Monday, February 08, 2016

How Green Was My Valley

1 comment:

Hemantha Kumar Pamarthy said...

...धरती पे अम्बर की, आँखों से बरसती है
इक रोज़ यही बूँदें, फिर बादल बनती हैं
इस बनने बिगड़ने के, दस्तूर में सारे हैं ना जाने कहाँ जाएँ, हम बहते धारे हैं...