...धरती पे अम्बर की, आँखों से बरसती हैइक रोज़ यही बूँदें, फिर बादल बनती हैंइस बनने बिगड़ने के, दस्तूर में सारे हैं ना जाने कहाँ जाएँ, हम बहते धारे हैं...
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...धरती पे अम्बर की, आँखों से बरसती है
इक रोज़ यही बूँदें, फिर बादल बनती हैं
इस बनने बिगड़ने के, दस्तूर में सारे हैं ना जाने कहाँ जाएँ, हम बहते धारे हैं...
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